पुराने समय की बात है। एक गाँव में दो घनिष्ठ मित्र रहते थे — राजू और मोहन। दोनों बचपन से साथ थे, स्कूल भी साथ जाते और खेतों में भी साथ काम करते। वे एक-दूसरे के बिना एक दिन भी नहीं रह सकते थे।
लोग उनकी दोस्ती की मिसाल देते थे।
🧭 जंगल की यात्रा
एक दिन उन्होंने तय किया कि वे पास के जंगल में घूमेंगे और कुछ लकड़ियाँ इकट्ठा करेंगे ताकि घर पर चूल्हे के लिए ईंधन हो।
वे दोनों साथ में जंगल गए। रास्ता सुंदर था, लेकिन थोड़ी ही देर में उन्हें समझ में आ गया कि वे रास्ता भटक चुके हैं।
🐻 खतरा
अचानक झाड़ियों में से एक बड़ा जंगली भालू निकला। वह गुर्रा रहा था और सीधा उनकी ओर बढ़ रहा था।
राजू को भालू पर चढ़ने का तरीका पता था, और उसने बिना सोचे जल्दी से एक पेड़ पर चढ़कर खुद को बचा लिया।
लेकिन मोहन को पेड़ पर चढ़ना नहीं आता था। वह डर के मारे काँपने लगा, लेकिन फिर उसे अपने बुज़ुर्ग दादाजी की बात याद आई:
“भालू मृत शरीर को नहीं छूता।”
मोहन तुरंत ज़मीन पर लेट गया और साँस रोककर एकदम शांत हो गया।
भालू उसके पास आया, उसकी गर्दन सूंघी, उसके कान के पास कुछ फुसफुसाया, और फिर चला गया।
🌳 असली चेहरा
जब भालू चला गया, तो राजू पेड़ से नीचे उतरा और हँसते हुए बोला:
“अरे वाह! भालू तुम्हारे कान में क्या कह रहा था?”
मोहन गंभीरता से बोला:
“वह कह रहा था — ‘ऐसे दोस्तों से दूर रहो जो मुसीबत में तुम्हें अकेला छोड़ दें।’”
राजू शर्मिंदा हो गया। उस दिन से मोहन ने यह समझ लिया कि सच्चा दोस्त वही होता है जो हर परिस्थिति में साथ निभाए — ना कि सिर्फ अच्छे समय में।
🎯 नैतिक शिक्षा (Moral of the Story):
👉 मुसीबत के समय जो साथ दे, वही असली दोस्त होता है।
👉 सिर्फ साथ रहने से दोस्ती नहीं होती, साथ निभाने से होती है।
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