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अहंकार का अंत

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एक समय की बात है, एक घने और शांत जंगल में एक बहुत बड़ा साँप रहता था। वह इतना विशाल और डरावना था कि सारे जानवर उससे डरते थे।

लेकिन साँप का स्वभाव बहुत ही घमंडी और हिंसक था। वह किसी को भी बिना वजह काट लेता, अपने से छोटे जानवरों को डराता और सबको अपनी ताकत दिखाने में गर्व महसूस करता।

😨 जंगल का डर

साँप के डर से कोई भी जानवर उस रास्ते से नहीं गुजरता जहाँ वह रहता था। बच्चे खेल नहीं पाते, हिरण पानी पीने नहीं जा पाते, पक्षी नीचे नहीं उतरते। जंगल में चारों ओर भय और अशांति फैल गई थी।

🧘 साधु का आगमन

एक दिन जंगल में एक शांत और ज्ञानी साधु आए। उन्होंने देखा कि जानवर डरे हुए हैं और पूरे जंगल का संतुलन बिगड़ गया है। उन्होंने साँप से मिलने का निश्चय किया।

जब साधु साँप के पास पहुँचे तो साँप ने भी उन्हें डराने की कोशिश की, लेकिन साधु बिल्कुल नहीं डरे। वे बोले:

“बेटा, ताकत का मतलब यह नहीं कि दूसरों को तकलीफ़ दी जाए। असली ताकत वह होती है जो संयम में हो। अगर तुम वाक़ई में शक्तिशाली हो, तो अपनी शक्ति का सही उपयोग करो।”

🕉️ बदलाव की शुरुआत

साँप पहली बार किसी से इस तरह बात करते हुए सुन रहा था। साधु की शांत और सच्ची बातों ने उसके भीतर कुछ जगाया। उसने वादा किया कि अब वह किसी को नुकसान नहीं पहुँचाएगा।

साधु प्रसन्न हुए और आशीर्वाद देकर चले गए।

😔 लेकिन अब...

कुछ दिनों तक सब कुछ ठीक चला। लेकिन जब जानवरों को पता चला कि साँप अब काटता नहीं है, तो उन्होंने उसे तंग करना शुरू कर दिया।

बच्चे उसकी पूँछ खींचते
बंदर उसके ऊपर कूदते
कुछ जानवर उस पर पत्थर फेंकते
साँप अब दुखी रहने लगा। उसका शरीर ज़ख़्मी हो गया और आत्मसम्मान भी टूट गया।

😓 वापस साधु के पास

कुछ समय बाद साधु फिर जंगल से गुज़रे। साँप उनके पास गया और बोला:

“गुरुदेव, आपने मुझे अहिंसा सिखाई, मैंने किसी को नहीं काटा। लेकिन अब सब मुझे तंग करते हैं। क्या यह सही है?”

🧠 साधु की सीख

साधु मुस्कराए और बोले:

“बेटा, मैंने तुमसे कहा था कि दूसरों को मत काटो, लेकिन यह नहीं कहा था कि फुफकारना भी छोड़ दो!”

“अगर कोई तुम्हें नुकसान पहुँचा रहा है, तो अपनी उपस्थिति का एहसास कराओ। शांत रहो, लेकिन निर्बल मत बनो।”

🎯 नैतिक शिक्षा (Moral of the Story):
👉 अहंकार करना बुरा है, लेकिन आत्म-सम्मान बनाए रखना ज़रूरी है।
👉 दया दिखाना चाहिए, पर ज़रूरत पड़ने पर खुद की रक्षा भी करनी चाहिए।

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